ज्योतिष शास्त्र में हालांकि मेरा रत्ती भर भी विश्वास नहीं है। लेकिन कई बार संयोग ऐसा बनता है कि समझ में नहीं आता कि इसे इत्तेफाक माना जाए या कुछ और। ऐसा ही संयोग इन दिनों 'अ’ और 'आ’ को लेकर बना हुआ है। अ से अगस्त का महीना शुरू हुआ ही था कि देश के लिए आ से आफत आन खड़ी हुई। वैसे तो भारत में आफतों का कभी अंत नहीं होता। लेकिन कई बार परिस्थितियां ऐसी होती हैं कि पूरा देश प्रभावित होता है।
अब अ और आ पर गौर फरमाइएगा। अन्ना का आंदोलन अरसे से जारी था। अगस्त में फिर आमरण अनशन की आफत। अन्ना ने दिन भी चुना तो आजादी का। आरोपों का पहले ही अंत नहीं था, उस पर कहा गया कि आचरण अच्छा नहीं तो 'आलाकमान’ को तिरंगा फहराने का अधिकार कहां? अब अवाम तो आजादी चाहता है। इसीलिए तो आंदोलन पर आमादा है।
अन्ना की आफत गले में ही अटकी थी, उस पर कम्बख्त ये प्रकाश झा अपनी 'आरक्षण’ और ले आए। अब अनुसूचित जाति के अपमान की आफत! अन्ना के फेर से मुक्त मुख्यमंत्रियों ने इस अ, आ में उलझना उचित समझा और 'आरक्षण’ रूपी आग को दो महीने बाद लगाने का आदेश दिया। देखा जाए तो अक्तूबर में फिर से अ और आ का संयोग बन सकता है!
मेरे साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ। मार्च में जापान सुनामी की तबाही से जकड़ा था। इसी दौरान मुझे कम से कम 10 दोस्तों के जख्मी होने की सूचना मिली, जिनके नाम 'ज’ से शुरू होते थे। इस बात ने मुझे हैरान किया और मैंने उन लोगों को सांत्वना में ग्रहों का प्रकोप होने की बात कह डाली। हालांकि अभी भी मैं इसे मानता नहीं हूं।
अब अ और आ की असलियत क्या है, यह तो नहीं जानता लेकिन अगस्त का अंत होने में अभी 16 दिन बाकी हैं और यही मेरी परेशानी का सबब बना हुआ है। मेरे दिन वैसे ही अच्छे नहीं रहते हैं, इस पर मेरा नाम भी अ से शुरू होता है। आगे अल्ला जाने अंजाम!
अब अ और आ पर गौर फरमाइएगा। अन्ना का आंदोलन अरसे से जारी था। अगस्त में फिर आमरण अनशन की आफत। अन्ना ने दिन भी चुना तो आजादी का। आरोपों का पहले ही अंत नहीं था, उस पर कहा गया कि आचरण अच्छा नहीं तो 'आलाकमान’ को तिरंगा फहराने का अधिकार कहां? अब अवाम तो आजादी चाहता है। इसीलिए तो आंदोलन पर आमादा है।
अन्ना की आफत गले में ही अटकी थी, उस पर कम्बख्त ये प्रकाश झा अपनी 'आरक्षण’ और ले आए। अब अनुसूचित जाति के अपमान की आफत! अन्ना के फेर से मुक्त मुख्यमंत्रियों ने इस अ, आ में उलझना उचित समझा और 'आरक्षण’ रूपी आग को दो महीने बाद लगाने का आदेश दिया। देखा जाए तो अक्तूबर में फिर से अ और आ का संयोग बन सकता है!
मेरे साथ ऐसा पहली बार नहीं हुआ। मार्च में जापान सुनामी की तबाही से जकड़ा था। इसी दौरान मुझे कम से कम 10 दोस्तों के जख्मी होने की सूचना मिली, जिनके नाम 'ज’ से शुरू होते थे। इस बात ने मुझे हैरान किया और मैंने उन लोगों को सांत्वना में ग्रहों का प्रकोप होने की बात कह डाली। हालांकि अभी भी मैं इसे मानता नहीं हूं।
अब अ और आ की असलियत क्या है, यह तो नहीं जानता लेकिन अगस्त का अंत होने में अभी 16 दिन बाकी हैं और यही मेरी परेशानी का सबब बना हुआ है। मेरे दिन वैसे ही अच्छे नहीं रहते हैं, इस पर मेरा नाम भी अ से शुरू होता है। आगे अल्ला जाने अंजाम!
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