LOVE THE NATURE...LOVE THE NATION

LOVE THE NATURE...LOVE THE NATION

Friday 4 November 2011

बेबे जी मैं डाकू बणांगा

 वीरेंद्र भाटिया
    बेबे नी मैं संत बणांगा, बंदा बड़ा कुसंत बणांगा, चिट्टा चौला लम्मा पाके, लौकां नूं मैं लुट्टूं बेबे आदि आदि आदि। ये गीत दो चेहरों वाले डाकुओं के लिए है। दो चेहरे वाले डाकुओं का एक वर्ग और भी है, हमारे समाजसेवी नेता लोग। ईमानदार लोगों को  संत और नेता नहीं बनना चाहिए क्योंकि चेहरे पर चेहरा लगा कर लोगों से बेईमानी करना अनैतिकता है।
    वैसे भी अब क्या करिएगा? डाकू बनने के अलावा कोई रोजगार बचा भी तो नहीं है, जनरल कैटेगरी में हैं लेकिन जाट नहीं हैं तो सरकार नौकरी नहीं देगी। बिजनेस करो तो कंपनी रजिस्टे्रशन से लेकर मुनाफे तक पर सरकार की नजर रहती है। मुनाफा आया नहीं कि 30 प्रतिशत टैक्स सरकार को पहले दो। पांच लांख की कोई एंटरी बैंक में कर लो तो सरकार कागज घर भेज देती है। कोई एन.जी.ओ. बना कर चंदा ले लो तो दिग्विजय जैसे भांड (सांड) वैसे सींग उठाकर पीछे पड़ जाते है। अब रास्ता क्या है? पैट्रोल फिर 1.80 पैसे बढ़ा दिया। गैस के दाम 560 रुपए प्रति सिलेंडर हो जाएंगे। सब्जी लेने जाओ तो टोकरी में पैसे और जेब में राशन, सब्जी आती है। कभी रूस में ऐसा हाल था। प्रणब दा हमारे वित्त मंत्री है कहते हैं, महगाई दिसंबर में नीचे आएगी इस बार त्यौहारी मांग के कारण महंगाई बढ़ गई। और कृषि मंत्री शरद पवार कहते कि फलां चीज़ के दाम बढ़ेंगे और स्टोरिये फटाक से चीजों को स्टोर में भेज देते हैं। जितना बड़ा शरद पवार का डील-डौल है, उससे कई गुना बडा उनका लालच है। सरकार को महंगाई की मूल जड़ भीमकाय शरद पवार दिखता ही नहीं। रिजर्व बैंक का अंधा गवर्नर हर बार ब्याज दरें बढ़ाकर बाजार से पैसा खींचने की कोशिश कर रहा है। इसी वित्तीय वर्ष में वह धीरे-धीरे करके लोन पर 4 प्रतिशत ब्याज दर बढ़ा चुका है लेकिन महंगाई डायन नीचे आने की बजाय  6 से 12 प्रतिशत की छलांग लगा गई। गवर्नर साहब की आंख नहीं खुल रही कि ब्याज दर बढ़ाने के बाद भी यदि महगाई बढ़ रही है तो कारण कुछ और होगा। आप मध्यम वर्ग को नाहक क्यों निचोड़ लेना चाहते हैं? गवर्नर साहब को दिखता ही नहीं कि हमारी अर्थव्यवस्था में जो 70 प्रतिशत काला धन घूम रहा है, महंगाई की असली वजह तो वह है। और उस काले धन की मार्फत लोगों ने जरूरी चीजों की जमाखोरी कर रखी है। ना तो आपने काले धन वालों के चेहरे उघाडऩे हैं और ना ही जमाखोरों को किसी प्रकार हतोत्साहित करना, तो पोला सा मुंह बनाकर टी वी पर महंगाई के बारे में अनाप- शनाप बोल देने से क्या हासिल है?
    पैट्रोल की कीमत बढ़ाने का बहाना देखिए! क्योंकि रुपये की कीमत घट गई है और डॉलर की कीमत बढ़ गई है इसलिए पैट्रोल कपंनियों को 1.50 रुपए प्रति लीटर का नुकसान होने लगा था, बढ़ा दिए 1.82 रुपए प्रति लीटर। शायद टैक्स भी साथ ही बढ़ गया। बेशर्म सरकारों को इतनी भर रहम नहीं आती कि कंपनियों की बैलेंस शीट का ही आपको ख्याल है तो कम से कम बढ़ी दरों पर सरकार तो टैक्स वसूलने से बाज आ जाए। लेकिन नहीं। सुधि पाठकों की जानकारी के लिए बता दूं कि पैट्रोल पर जितना राजस्व सरकारों को मिलता है उसी एक मद से सरकार अपने राजकीय खर्च, कर्मचारियों के वेतन समेत आराम से निकाल लेती है।
    एक पंजाबी का गाना 'सरकारां चलदियां ने साडे ही पैसेयां ते' जब मध्यम वर्ग सुनता है तो मन मसोस कर रह जाता है। आखिर करें क्या? साडे पैसों से अकेली सरकारें ही नहीं चलती, पूरा सिस्टम चल रहा है। उनके घर भी चलते रहें, इसके लिए अंधों के झुंड को एक बार देश के उस वर्ग के भीतर भी झांक कर देख लेना चाहिए जो महंगी कारों और एसी रूम के बाहर तपती दुपहरी और ठिठुरती रात में अपना घर चलाने के लिए दिन-रात एक किए हैं। उसी की मेहनत से आपकी सरकारें हैं सरकार जी! आप डाकू बनने के लिए माहौल तैयार ना करें, और खुद भी डाकू बनने से बाज आएं।

No comments:

Post a Comment